जीत में खुश हो के गम को भुलाना सीख लिया
और गम में झूठी ही सही पर हसी बनाना सीख लिया
पर गैरों की ख़ुशी को अपना बनाना जाना नहीं
हसना तो सीख लिया पर मुस्कुराना नहीं
ढलते देखा सूरज को आज, बदलो को ओअत में
राज़ दबा है उस रंग का, कुदरत के नरम होठ में
फूल देखे, तारे ताके, दुःख और ग़म की चोट में
भूल गया मतलब इनका, ढलती ख़ुशी की सौत में
डूब सा गया हो अब से मैं , इस रंग के स्त्रोत में
जलता पाया खुद को मैंने, इस कुदरत की ज्योत में
भुज गयी यह ज्योति भी तोह आज मेरी मौत पे
पर खिले फूल चमके सितारे, आज मेरी चौथ पे
पर खिले फूल चमके सितारे, आज मेरी चौथ पे
इन अँधेरे रास्तो पे जीत का साया नहीं
हारने पे हस दिया लेकिन मैं मुस्काया नहीं
सीखने को ज़िन्दगी से सीख लिया है सब कुछ
पाने को दुनिया से मैंने कुछ भी तो पाया नहीं
इन हरी हरी वादियों का हो जाने को जी करता है
इस खुले आसमान के साए में सो जाने को जी करता है
वोह तो हम बस इस ज़िन्दगी से बंधे है वर्ना
आज सब कुछ भुला खो जाने को जी करता है
पैरो को ज़मीन पर रख कद को बढाओ
कंधो की सवारी तो कोई भी कर सकता है
अगर उच्चाई से ही जीत का फैसला होता
तो आज पंछी भी हमें दाना दाल रहे होते
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