Monday, August 22, 2011

My collection

जीत में खुश हो के गम को भुलाना सीख लिया
और गम में झूठी ही सही पर हसी बनाना सीख लिया
पर गैरों की ख़ुशी को अपना बनाना जाना नहीं
हसना तो सीख लिया पर मुस्कुराना नहीं
 
ढलते देखा सूरज को आज, बदलो को ओअत में
राज़ दबा है उस रंग का, कुदरत के नरम होठ में
फूल देखे, तारे ताके, दुःख और ग़म की चोट में
भूल गया मतलब इनका, ढलती ख़ुशी की सौत में
डूब सा गया हो अब से मैं , इस रंग के स्त्रोत में
जलता पाया खुद को मैंने, इस कुदरत की ज्योत में
भुज गयी यह ज्योति भी तोह आज मेरी मौत पे
पर खिले फूल चमके सितारे, आज मेरी चौथ पे
पर खिले फूल चमके सितारे, आज मेरी चौथ पे
इन अँधेरे रास्तो पे जीत का साया नहीं
हारने पे हस दिया लेकिन मैं मुस्काया नहीं
सीखने को ज़िन्दगी से सीख लिया है सब कुछ
पाने को दुनिया से मैंने कुछ भी तो पाया नहीं
इन हरी हरी वादियों का हो जाने को जी करता है
इस खुले आसमान के साए में सो जाने को जी करता है
वोह तो हम बस इस ज़िन्दगी से बंधे है वर्ना
आज सब कुछ भुला खो जाने को जी करता है
पैरो को ज़मीन पर रख कद को बढाओ
कंधो की सवारी तो कोई भी कर सकता है
अगर उच्चाई से ही जीत का फैसला होता
तो आज पंछी भी हमें दाना दाल रहे होते
 
 
 

क्या हुआ मेरे देश को ?

ना देश अपना ना लोग पराये
अब किस चोर को कोतवाल बनाए
अब जैल भी लगती है नेताओ को सुहानी
और जान प्रतिनिधि को पोलीस पकड़ ले जाए
गाँधी का यह देश है मेरा और अहिंसा मेरा धरम
रोक दिया जाता हर कोई जो करता अपना करम
यहा कसाब को जमाई बनाए और अन्ना को मुजरिम
बोल उठेगा देश सारा उबलेगा हर खून गरम
पैदा हुआ भगत जो जल्लियाँवाला मे खेली होली
अब डाइयर भी बोले हिन्दी तो हुकूमत भी यही बोली
उठे हत्यार देश के खुद पे ऐसा कल ना आएगा
पर एक दिन ऐसा आएगा जब भगत खड़ा हो जाएगा
आज़ादी पे बंद गयी पट्टी देश हुआ अनदेखा
लोकतंत्र मे लोकपाल ही लगाएगा सब पे रेखा
फिर से आए नेहरू गाँधी फिर से चलेंगे दांडी
आज़ादी ना देखी तो क्या संग्राम तो मैने देखा
आज़ादी ना देखी तो क्या संग्राम तो मैने देखा